नागपुरी भाषा का क्षेत्रीय प्रसार, nagpuri bhasha ka chetriya prasar

नागपुरी भाषा का क्षेत्रीय प्रसार

नागपुरी मुख्यत: राँची जिले की बोली है, किन्तु इसका क्षेत्र न केवल छोटानागपुर के शेष जिलों, अपितु मध्यप्रदेश, उड़ीसा एवं पश्चिमी बांगल के में कुछ भागों तक विस्तृत है।

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नागपुरी भाषा का क्षेत्रीय प्रसार nagpuri bhasha ka chetriya prasar


नागपुरी भाषा का क्षेत्रीय प्रसार :

नागपुरी मुख्यत: राँची जिले की बोली है, किन्तु इसका क्षेत्र न केवल छोटानागपुर के शेष जिलों, अपितु मध्यप्रदेश, उड़ीसा एवं पश्चिमी बांगल के में कुछ भागों तक विस्तृत है। हजारीबाग के अधिकांश दक्षिणी भागों में नागपुरी के प्रभाव अत्यन्त स्पष्ट है। इसके (पलामू के) पश्चिम में भोजपुरी और उतर में मगही अतउ' 'जतउ' वाली का रंग चढ़ता जाता है। किन्तु पलामू की जो ठेठ बोली है- बोली- वह नागपुरी से बहुत भिन्न नहीं है। 

इस दृष्टि से पलामू को मूलतः नागपुर का क्षेत्र माना जा सकता है। मानभूम-सिंहभूम के पश्चिमी भागों में बंगला प्रभावपन नागपुरी बोली जाती है। इसे ही 'पंचपरगनिया' कहा जाता है। यह बोली राहे, बंड है तमाड़, सोनाहातु, सिल्ली (राँची जिला) से ही आरम्भ हो जाती है। इसका विस्तार वर्तमान पश्चिमी बंगाल के झालदा, पुरूलिया तक दृष्टिगत होता है। धनबाद पुरूलिया आदि में इसी बंगला-मिश्रित नागपुरी (मगही नहीं) को 'खोरठा' एं कुरमाली की संज्ञा प्राप्त है। मध्यप्रदेश में नागपुरी सुरगुजा-जसपुर एवं अम्बिकापु तक और उड़ीसा में गांगपुर तक सीमा-विस्तार करती है। 

बिना किसी आग्रह या असक्ति के यह घोषित करते संकोच नहीं कि नागपुरी साहित्य परिमाण में जितना विपुल है, सौन्दर्य में उतना ही उत्कृष्ट भी। कुछ लोग का कथन है कि नागपुरी कवि हनुमान सिंह के ही एक लाख गीत वर्तमान हैं। उन्हों तीन लाख गीत लिखे थे, जिनमें एक लाख 'गंगा माता' को और एक ला 'अग्निदेव' को समर्पित कर दिया था। उनके प्रतिस्पर्धी एवं समकालीन बाजूराम द्विजकमल आदि के भी सहस्रों गीत अनुमति किये जाते हैं। 

इस साहित्य के शिष्ट गीतों की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें काव्यशास्त्री दृष्टि से रस-रीति के निर्वाह की सजग चेष्टा पड़ती है। यहाँ सिर्फ एक उदाहरण प्रस्तुत है: 

उमड़ि गगन घन घमंड, 

चमकत चपला प्रचण्ड, 

दुन्दुभि चहुँ ओरे, 

अग-गग-गग-घहरत, 

झरी झण्कत जलधरे गोइ, 

आजु अवसर अस गोविन्द नहीं घरे। ~ (कंचन : पावस) 

नागपुरी-साहित्य परिमाण में वृहद होने के साथ ही काव्य-रूपों की विविधता से भी समृद्ध है। इसके गद्य रूपों में लोग कथाओं के साथ अब कहानी, एकांकी, व्यक्तिगत निबन्ध, रेडियो रुपक, गवेषणात्मक-आलोचनात्मक लेख आदि भी लिखे जा रहे हैं।

नागपुरी की विषय-विविधता एवं राग-लय-रस की अनेकरूपता भी कम मोहक नहीं। इसमें सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक सभी विषयों पर कलाकारों ने दृष्टि दौड़ाई है। एक ओर राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा तथा ईसाईयों की भक्तिधारा है तो दूसरी ओर कबीरपन्थियों की निर्गुण उलटनवासियों एवं दृष्टिकूट के पद-पर्वत; एक ओर शृंगार की सरस उन्मादिनी सरिता है, तो दूसरी ओर करुणा का सागर, एक ओर जीवन की यथार्थ कटुताओं की तिक्तता है, तो दूसरी ओर हास्य की मधुरता। प्रकृति-धात्री की गोद में पली नागपुरी की इसी सौन्दर्य-गरिमा से वशीभूत होकर प्रो. केसरी कुमार ने इसे 'गीतों की रानी' की उपाधि प्रदान की है।

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