डॉक्टर शंकर अबाजी भिसे इन हिन्दी
डॉक्टर शंकर अबाजी भिसे इन हिन्दी
बचपन से ही उन्हें विज्ञान से काफी लगाव था । वे समय मिलने पर कुछ - न - कुछ करते रहते थे । केवल 14 साल की आयु में ही उन्होंने अपने घर में ही कोयला गैस बनाने वाले उपकरण का निर्माण किया । 16 साल की आयु में उन्होंने आविष्कार के लिए इंग्लैंड या अमेरिका जाने का फैसला किया ।
1890-95 के दौरान उन्होंने ऑप्टिकल इल्यूजन पर कार्य किया । उन्होंने एक ठोस पदार्थ के दूसरे ठोस पदार्थ में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया । अल्फ्रेड नामक वैज्ञानिक ने उनके आविष्कार की सराहना की और उन्हें ' गोल्ड मेडल ' से सम्मानित किया गया । मुंबई में उन्होंने एक साइंस क्लब ' की स्थापना की ।
उन्होंने विज्ञान - पत्रिका विविध कला प्रकाश ' का प्रकाशन मराठी भाषा में भी किया । इस पत्रिका के द्वारा वे लोगों को सरल भाषा में विज्ञान के बारे में बताते थे । जब अबाजी भिसे इस पत्रिका का प्रकाशन कर रहे थे , तभी लंदन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । इस प्रतियोगिता का विषय वजन और पैकिंग के लिए एक ऑटोमेटिक मशीन था ।
इस प्रतियोगिता में एक ऐसी मशीन का निर्माण करने की चुनौती थी , जो आटा , चावल के ढेर में से आधा या एक किलो उठाकर खुद से पैक कर ले । अबाजी ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और इसे जीता । उनके द्वारा डिजाइन की गई मशीन को काफी अच्छा माना गया । इसके बाद से तो उनको अनेक लोग जानने लगे । उन्होंने रसोई के कई उपकरण बनाए ।
उनका सबसे प्रसिद्ध आविष्कार टाइप सी कास्टिंग और कंपोजिंग मशीन थी । उस समय टाइप सी कास्टिंग की गति काफी धीमी होती थी । भिसे द्वारा बनाई गई मशीन के कारण छपाई काफी तेज होने लगी । लंदन के कुछ वैज्ञानिकों ने उन्हें चुनौती दी । अबाजी ने चुनौती को स्वीकार करते हुए एक ऐसी मशीन का निर्माण किया , जिससे अलग - अलग अक्षरों में छपाई हो सकती थी ।
यानी हर मिनट 1200 अलग - अलग अक्षरों में छपाई हो सकती थी । अनेक भारतीयों ने अबाजी भिसे की पहचान बनाने के लिए युद्धस्तर पर कार्य किए , लेकिन परिणाम आशानुरूप नहीं रहे । इसलिए भारत के एडीसन डॉ . शंकर अबाजी भिसे ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हो पाए । विद्यार्थियों को उनके बारे में अधिक - से - अधिक पढ़ना चाहिए और उनके बारे में जानकारी एकत्र कर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए ।
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